सदियों से कई अभिलाषाएं मेरे अवचेतन मन में रच बस चुकी है
जिनके कारण में नित्य निरंतर बंजारों सा भटक रहा हूँ
किंचित ही मेरे स्मृति पटल पर कुछ हल्का सा अहसास हुआ
में मृगमरीचिका रूपी अभिलाषाओं के पीछे हमेशा से अग्रसर रहा
इस जीवन में आने का ये मेरा उद्देश्य नही था
सदियों पहले किसी और कारण से पहले मेरा सृजन हुआ
कुछ कार्य दिया था मुझको वो भूल गया में और मेरा पतन हुआ
तब से शायद में भटक रहा हूँ ,हर पल शायद इसीलिए अशांत है मन
जिसने भेजा था मुझको अपने रूप जैसा सृजन कर
उसकी अवहेलना में करता रहा और अपने मन की में करता रहा
अब जाकर मुझे ऐसा लगा कुछ खो सा गया है मुझ में
इस कारण जानने की जिज्ञासा में फिर मिलन हुआ
जब उससे कहा मुझसे भूल हुई में प्रेम के दीप जला न सका
तुमने जो कार्य मुझे दिया उसे ठीक से में निभा न सका
उसने कहा देर हुई तो देर हुई तू आ तो गया
हम प्रेम की ज्योत जलाएंगे और सब भटके हुओं को यह कहानी सुनायेंगे
और एक एक कर उनको जीवन का लक्ष्य बताएँगे
खुदा की बनायीं दुनियां में खुदा जैसा सोचता है वैसे ही जीवन बिताएंगे |
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